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अनुभूति में वीरेंद्र जैन की रचनाएँ -

नए गीत-
जय हो
नेपथ्य का खेल

गीतों में
अब निर्बंध हुआ

जाने कितने साल हो गए
कोई कबीर अभी ज़िंदा है
चाँदी की जूती
देखने को
बनवासों का कोलाहल है
मौत मुझको दे दे मोहलत
ये ही दिन बाकी थे
लिप्साओं ने सारे घर को

अंजुमन में-
किताबें

छंदमुक्त में-
नया घर

हास्य व्यंग्य में-
आमचुनाव में
क्योंजी आप कहाँ चूके?
खूब विचार किए
नाम लिखा दाने दाने पर
बेपेंदी के लोटे
मुस्कान ये अच्छी नहीं
ये उत्सव के फूल
हम चुनाव में हार गए

  नेपथ्य का खेल

नहीं नज़र आते हैं तुमको
गुप्त इशारे उँगली के
तुम तो केवल खेल देखते
रहते हो कठपुतली के

मगन खेल में, तुम्हें पता क्या
किसको कौन नचाता है
वही देखते रहते हो जो
खेल सामने आता है
परदे के रंग, रंगे हुए हैं
अनगिन धागे सुतली के

नहीं नज़र आते हैं तुमको
गुप्त इशारे उँगली के
तुम तो केवल खेल देखते
रहते हो कठपुतली के

२ मार्च २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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