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भोले चेहरे
मैं
वसंत
शब्द

खुद को परखना

मुझे
जब-जब
परिस्थितियों से जुझने के लिए
या कि
जीने के लिए
बार-बार नया मुखौटा ओढ़ना पड़ता है, तो
मेरा हर पिछ्ला
मुखौटा
दब जाता है।
और
फ़ुर्सत के वक्त जब मैं
इन सारे मुखौटों में
अपना निजी चेहरा
खोजती हूँ, तो
वह कहीं नज़र नहीं आता
या कि
वह दब-दब कर इस कदर बदल चुका होता है कि
उसे पहचानना भी
मुश्किल हो जाता है।
कठिन है बहुत, खुद को परखना।

24 फरवरी 2007

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