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चमन में
बेताबियों को हद से
मैं खुशी से
सुनते हैं कहाँ

अंजुमन में-
आँधियों के पर
क्या कशिश है
खुशी की हदों के पार
गिरा हूँ मुँह के बल
डर
ज़माने से रिश्ता
दिल से दिल तक

दीवार-ओ-दर
दोस्तों का है अजब ढब
फिर पहाड़ों से झरना
बढ़ रही है आजकल

बादे बहार आई
मुझे भा गई
मेरे वतन की ख़ुशबू
रियासत जब भी ढहती है
रो दिए

सदा धूप मे
सीप में मोती

शोर दिल में

कविताओं में-
भारत देश महान

  मैं खुशी से रही बेखबर

मैं ख़ुशी से रही बेख़बर
ग़म के आँगन में था मेरा घर

रक्स करती थीं ख़ुशियाँ जहाँ
ग़म उन्हें ले गया लूटकर

आशियाँ ढूँढते-ढूँढते
खो दिया मैंने अपना ही घर

गुफ़्तगू जिनसे होती रही
उनको देखा नहीं आँख भर

चोट चाहत को ऐसी लगी
टुकड़े-टुकड़े हुई टूट कर

कैसे परवाज़ ‘देवी’ करे
नोचे सैयाद ने उसके पर

१४ फरवरी २०११


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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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