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शरद ऋतु

  शरद ऋतु

शरद की सुषमा
नील-धवल स्फटिक सा आसमां
कमल-कुमुदनी का समां।

सुधा बरसाती चाँदनी
उतर आयी है मेरे आँगन में।
कंगना बन खनक-खनक
तेरे ही गीत गाती है।

चाँदी के पहने पायल
चाँदी के पहने झूमके
मेरा शृंगार सजाती है।
चाँद की उम्र रात भर ही सही
लेकिन
एक तड़प, एक कशिश
ता उम्र जगाती है।

२४ सितंबर २००६

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