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अनुभूति में प्रो. 'आदेश' हरिशंकर
की रचनाएँ-

गीतों में-
आया मधुमास

अमल भक्ति दो माता
एक दीप
चन्दन वन
जीवन और भावना
धरती कहे पुकार के
नया उजाला देगी हिन्दी
रश्मि जगी

लौट चलो घर
वन में दीपावली
विहान हुआ
सरस्वती वंदना

कविताएँ-
जीवन
प्रश्न
मृत्यु
संपूर्ण

संकलन में-
ज्योतिपर्व  - दीपक जलता
          - मधुर दीपक
          - मत हो हताश
मेरा भारत  - मातृभूमि जय हे
जग का मेला -चंदामामा रे
नया साल   -शुभ हो नूतन वर्

 

प्रश्न

जब कि पशु का शिशु
सदा ही पशु कहाता,
और,
जब सन्तान मानव की
कहाती है मनुज ही।

वनस्पतियों की उपज है
वनस्पति ही तो कहाती
इस जगत में।
क्यों न फिर
भगवान की सन्तान भी
भगवान कहलाती भुवन में।

और, की जाती उपासित है
सदा भगवान-सी ही?
जब कि हर प्राणी यहाँ
भगवान की सन्तान,
फिर गुण क्यों नहीं
उसमें पिता के?

और,
यह शैतान है उपजा कहाँ से?
पुत्र है शैतान यदि भगवान का ही,
अर्थ है इसका कि फिर
भगवान तो
शैतान का भी बाप है।
शायद इसी से
मिट नहीं पाया अभी तक
विश्व का संताप है।।

(निष्क्रमण काव्य संग्रह से)

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