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अनुभूति में मुकुंद कौशल की रचनाएँ-

गीतों में-
ऐसी माचिस लाएँ कहाँ से
कितने घर हैं
यह नयी झुग्गी
नयी उमंगों की चंचलता
रंगबिरंगे मर्तबान में

अंजुमन में-
गीता जैसा पावन ग्रंथ
जितना मेरे हाथों की रेखाओं में

जितने भी अफसर
जो कड़ी धूप से
मानता हूँ

 

गीता जैसा पावन ग्रन्थ

गीता जैसा पावन ग्रन्थ उठाकर बोले।
मगर हमेशा झूठी कसमें खाकर बोले।

घोटाले नेता के माथे पर कलंक हैं
वे अपना पिछला इतिहास छुपाकर बोले।

उनसे जाने क्या पूछा इक पत्रकार ने
कल आ जाना, सबकी नजर बचाकर बोले।

काशी ले लो, काबा ले लो पाँच रुपै में
चित्र बेचने वाले हमें सुनाकर बोले।

आज वहाँ जंगी नीलामी है ज़मीर की
जो भी बोली बोले, ज़ोर लगाकर बोले।

रंग देखकर देना मेरे धरमी-दाता
अपनी-अपनी चादर सभी बिछाकर बोले।

हमने अपनी बात तहत में कह दी लेकिन
जिसमें ज्यादा ‘कौशल’ था सब गाकर बोले।

१ दिसंबर २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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