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अनुभूति में मुकुंद कौशल की रचनाएँ-

गीतों में-
ऐसी माचिस लाएँ कहाँ से
कितने घर हैं
यह नयी झुग्गी
नयी उमंगों की चंचलता
रंगबिरंगे मर्तबान में

अंजुमन में-
गीता जैसा पावन ग्रंथ
जितना मेरे हाथों की रेखाओं में

जितने भी अफसर
जो कड़ी धूप से
मानता हूँ

  मानता हूँ

मानता हूँ जिन्दगी की रात गहराई नहीं है।
किंतु जीवन का उजाला भी तो स्थायी नहीं है।

आज कितने ही सुधा से सींचते हैं कंठ अपने
किंतु उनमें से कोई भी कंठ विषपायी नहीं है।

जिन मकानों पर तुम्हारी लेखनी का सूर्य उतरा
अब वहाँ की एक भी दीवार पर काई नहीं है।

और सचमुच धूप से तुम तंग आकर चल दिये जब
आज तक छाया दरख्तों की मुझे भायी नहीं है।

क्या निभाएँगे वो रस्में प्यार की ‘कौशल’ जिन्होंने
प्यार की कसमें कभी भी भूलकर खाई नहीं हैं।

१ दिसंबर २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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