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अनुभूति में मुकुंद कौशल की रचनाएँ-

गीतों में-
ऐसी माचिस लाएँ कहाँ से
कितने घर हैं
यह नयी झुग्गी
नयी उमंगों की चंचलता
रंगबिरंगे मर्तबान में

अंजुमन में-
गीता जैसा पावन ग्रंथ
जितना मेरे हाथों की रेखाओं में

जितने भी अफसर
जो कड़ी धूप से
मानता हूँ

 

जितना मेरे हाथों की रेखाओं में

जितना मेरे हाथों की रेखाओं में उत्कर्ष लिखा।
तौल के उसने उतना मेरे पाँवों में संघर्ष लिखा।

जिसका जीवन के यथार्थ से जीवन भर नाता था
युग के माथे पर उसने ही, जीवन का आदर्श लिखा।

इक नारी से पूछा हमने जब नारी के बारे में
चेहरे की तख्ती पर उसने आँसू से निष्कर्ष लिखा।

अध्यापक ने चोर-लूटेरों पर निबंध लिखवाया तो
एक छात्र ने झूठे नेताओं का भारत वर्ष लिखा।

व्यथा-कथा के लेखन में भी उसने ही बाजी जीती
जिसने-जिसने अपने‘कौशल’से आखिर में हर्ष लिखा।

१ दिसंबर २०१५

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