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अनुभूति में मुकुंद कौशल की रचनाएँ-

गीतों में-
ऐसी माचिस लाएँ कहाँ से
कितने घर हैं
यह नयी झुग्गी
नयी उमंगों की चंचलता
रंगबिरंगे मर्तबान में

अंजुमन में-
गीता जैसा पावन ग्रंथ
जितना मेरे हाथों की रेखाओं में

जितने भी अफसर
जो कड़ी धूप से
मानता हूँ

 

यह नयी झुग्गी

यह नई झुग्गी अभी तनकर खड़ी तो है
देख लेना टूटकर गिर जाएगी कल तक।

बस्तियाँ बोझिल, उनींदी भोर में
पीर डूबी क्रन्दनों के शोर में
बन्द रोशनदान जैसी जिंदगी
सब्र में लिपटी हुई शर्मिन्दगी

नीति की दुर्गति, भयावहता गिरावट की
हर किसी की आँख में तिर जाएगी कल तक।

हर हथेली पर उभरते आबले
पाँव के नीचे लरजते जलजले
कामनाएँ देर तक सोती हुईं
वेदनाएँ रात भर रोती हुईं

गुदगुदी करती समय की खिलखिलाहट भी
मौन साधे दर्द के घर जाएगी कल तक।

घर गिरे, उजड़ीं पुरानी बस्तियाँ
फिर उठीं चौरास्तों से गुमटियाँ
बन्द आँखों में सुलगती आग है
आँसुओं में अग्निधर्मा राग है

आँधियाँ शायद, सभी कुछ ध्वस्त ही कर दें
किन्तु मेहनत फिर उसे सिरजाएगी कल तक

१ दिसंबर २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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