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शाहजहाँ को फिर न लेना पड़े जन्म

मेरे एक विदेशी मित्र ने कहा
अपने देश के किसी अजूबे के बारे मे बताओ
फिर क्या था हमने भी तपाक से
कर दी ईमेल ताजमहल की तस्वीर
और चाव लेकर बता डाला
उसका सारा इतिहास।

वापस जवाब आया
ताजमहल बहुत सुंदर लगा
और इतिहास भी बहुत है रोचक
संगमरमर की इस इमारत की कोइ साख नहीं
हमारा मन खुश हुआ
चलो उनको ताजमहल अच्छा लगा।

मगर उनकी अगली पंक्ति ने कर दिया स्तब्ध
मानो घड़ों पानी दिया उड़ेल
पूछा की ताजमहल तो ठीक है
मगर उसके पीछे काले पानी की
बहती धारा है क्या?
सफ़ेद इमारत और काले पानी का क्या है मेल?
आपकी राजनीति का क्या यह है खेल?

बात में दम था, दिमाग़ हमारा सन्न था
मन में ख़याल दौड़ गया
सशक्त राजनीतिज्ञों के अभाव में
शायद शाहजहाँ को फिर न लेना पड़े जन्म
इस बार ताज के लिए नहीं
बस सिर्फ़ इसलिए कि,
प्यारी यमुना फिर बहे सुंदर सहज।
प्यारी यमुना फिर बहे सुंदर सहज।
प्यारी यमुना फिर बहे सुंदर सहज।

9 जून 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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