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याद आते हैं वे खेत और खलिहान

याद आते हैं वे खेत और खलिहान
लहलहाती सुनहरी बालियाँ मस्त पवन में
वह सरसराहट वह चहचहाहट दूर गगन में
मुस्कुराती सुनहरी धूप धरा के आँगन में।

याद आते हैं वे खेत और खलिहान
गेहूँ काटती बालाएँ चटकीले परिधानों में
गूँजती हँसी चहुँ ओर आसमानों में
बिखेरती रसीली फुहार मीठे गानों में।

याद आते हैं वे खेत और खलिहान
अठखेलियाँ बचपन की बौराए आमों में
अल्हड़ मस्ती झूमती बहती तरंगो में
कोयल की मीठी गूँज मस्त बयारों में।

याद आते हैं वे खेत और खलिहान
ढलती शाम लौटते पाखी नीड़ों में
जुगनुओं की चमक तारे परोसे थालों में
थकते कदम लौटें घरों के उजियारों में।

9 सितंबर 2007

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