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						 जब आता है 
						साल नया   |  
                    
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एक अजनबी जैसा लगता, जब आता है साल नया  
लेकिन फिर भी सबके मन को भा जाता है साल नया  
 
उलझी सी रह जाती हैं जब, कुछ गाँठें इस जीवन की  
आशादीप जलाकर उनको, सुलझाता है साल नया  
 
अनगिन इच्छाओं को ढोकर, आखिर थक जाते हैं हम  
आकर स्नेह भरे हाथों तब, सहलाता है साल नया  
 
संघर्षों के ताने बाने, में उलझा है यह जीवन  
राह अँधेरे में उजली सी, दिखलाता है साल नया  
 
गत वर्षों के अनुभव से ऐसा भी लगता है हमको  
बंद तिजोरी जैसा ही क्यों, छल जाता है साल नया  
 
दूर बहुत से पाखी उड़कर, अपने गंतव्यों पर आते  
सुख के स्वप्न दिखाकर भी तो, भरमाता है साल नया  
 
इस जीवन की रात अँधेरी जैसे भी कट जाती है  
नव-जीवन का सूर्योदय फिर, ले आता है साल नया  
 
- सुरेन्द्रपाल वैद्य  |  
                     
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