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अनुभूति में डा. सरस्वती माथुर की रचनाएँ -

यी छंदमुक्त रचनाओं में-
ख्वाबों के मौसम
पहचान का रंग
मैं जीना चाहती हूँ
रंगरेज मौसम
रेत के घरौंदे

नये हाइकु-
धूप पंखुरी

नई रचनाओं में-
ताँका

हाइकु में-
सर्द दिन

माहिया में-
धूप छाँह सा मन

छंदमुक्त में-
खेलत गावत फाग
गुलाबी अल्हड़ बचपन
मन के पलाश
महक फूलों की
माँ तुझे प्रणाम

क्षणिकाओं में-
आगाही
एक चट्टान

संकलन में-
वसंती हवा- फागुनी आँगन
          घरौंदा
धूप के पाँव- अमलतासी धूप

नववर्ष अभिनंदन- नव स्वर देने को

 

रंगरेज मौसम

फिर याद आई मुझे
अपने शहर की
चिलकती धूप और बारिश
जब मोती सी झरती थीं
आकाशी थाल से
रेशमी चमकती बूँदें
तो अंजुलि में बटोर कर
जलधार को थपथपाता
नंगे पैर दौड़ जाता था
बेलगाम घोड़े सा
मेरा बचपन
पीछे पीछे भागती
नटखट यायावर हवायें
तब थक जाती थीं
मुझे ढूँढ़ती हुई
मैं भी मावठ की धूप सी
कभी छिप जाती थी तो
कभी उग जाती थी
मानो कोई बीज हूँ और
सच में हरितिमा की
गंध सोख कर
पुष्पित-पल्लवित हो
प्रभात की
पहली किरणों सा
मेरा बंजारा मन
रंग-बिरंगा सा
फूल हो जाता था
जिसकी महक
बारिश की
हवाओं में घुल
आज भी बचपन में देखे
उन हसीन सपनों में
ले जाती है
जहाँ होती थी बस
उल्लास की परियाँ
कोमल एहसास की
सखियाँ और
आशाओं के हिंडोले जो
आज भी जब
याद आते हैं
मन मौसम को रँग जाते हैं
सच कितने मनभावन थे
वो मखमली पंखों पर
उड़ते खट्टे मीठे दिन और
बुलबुल से चह्कते वो
रंगरेज मौसम।

१५ नवंबर २०१६

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