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अनुभूति में हरीश भादानी की रचनाएँ—

नये गीतों में-
कोलाहल के आँगन
तो जानूँ
साँसें
साँसों की अँगुली थामे जो
सुई

गीतों में-
कोई एक हवा
टिक टिक बजती हुई घड़ी
ड्योढ़ी रोज़ शहर फिर आए
धूप सड़क की नहीं सहेली
ना घर तेरा ना घर मेरा
पीट रहा मन बन्द किवाड़े
सभी दुख दूर से गुजरे

  सभी सुख दूर से गुजरें

सभी दुख दूर से गुजरें गुजरते ही चले जाएँ
मगर पीड़ा उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुजरें...

हमारा घर धूप में छाँव की क्या बात जानें हम
अभी तक तो अकेले ही चले क्या साथ जानें हम
बता दें क्या घुटन की घाटियाँ कैसी लगीं हमको
रूदा नंगा रहा आकाश क्या बरसात जानें हम
बहारें दूर से गुजरें गुजरती ही चली जाएं
मगर पतझड़ उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुजरें...

अटारी को घटा से किस तरह आवाज दे दें हम
मेंहदिया पाँव को क्यों दूर का अन्दाज दे दें हम
चले श्मशान की देहरी नहीं है साथ की संज्ञा
बरफ के एक बुत को आस्था की आँच क्यों दें हम
हमें अपने सभी बिसरें बिसरते ही चले जाएं
मगर सुधियाँ उमर भर साथ चलने को उतारू हैं
सभी दुख दूर से गुजरें...

सुखों की आँख से तो बाँचना आता नहीं हमको
सुखों की साख से आँकना आता नहीं हमको
चलें चलते रहें उमर भर हम पीर की राहें
सुखों की लाज से तो ढाँपना आता नहीं हमको
निहारें दूर से गुजरें, गुजरते ही चले जाएं
मगर अनबन उमर भर साथ चलने को उतारू है
सभी दुख दूर से गुजरें...

२० फरवरी २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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