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अनुभूति में हरीश भादानी की रचनाएँ—

नये गीतों में-
कोलाहल के आँगन
तो जानूँ
साँसें
साँसों की अँगुली थामे जो
सुई

गीतों में-
कोई एक हवा
टिक टिक बजती हुई घड़ी
ड्योढ़ी रोज़ शहर फिर आए
धूप सड़क की नहीं सहेली
ना घर तेरा ना घर मेरा
पीट रहा मन बन्द किवाड़े
सभी दुख दूर से गुजरे

 

तो जानूँ

क्षण-क्षण की छैनी से
काटो तो जानूँ!

पसर गया है
घेर शहर को
भरमों का संगमूसा
तीखे-तीखे शब्द सम्हाले
जड़े सुराखो तो जानूँ!

फेंक गया है
बरफ छतों से
कोई मूरख मौसम
पहले अपने ही आँगन से
आग उठाओ तो जानूँ!

चैराहों पर
प्रश्न-चिन्ह सी
खड़ी भीड़ को
अर्थ भरी आवाज लगाकर
दिशा दिखाओ तो जानूँ!

१३ अक्तूबर २०१४

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