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  ३१. १. २०११

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शीत ऋतु के कुनकुने दोहे

 

बालकनी  में  उलझकर,  टँगी  कुनकुनी धूप
छत ने अभी उछाल दी, फटक फटक कर सूप
1
किरन  ओढ़कर  सो  गई, कंबल  पाँव समेट
ऋतु  के  नटखट  छोकरे,  खेल  रहे आखेट
1
सोया  एक  मचान  पर,  ऋतु मुट्ठी में बाँध
सपनों  में  खाता  रहा,  पीले  चावल  राँध
1
मोटी   सौर  लपेटकर,  ठिठुरे   सारी  रात
फटी  गोदड़ी  कह  गई,  सर्दी  की  औकात
1
ठंड  धूप  में  सो  रही, छत पर पाँव पसार
छाँव  मुँडेरी  पर  टँगी, ठिठुरे  भर सिसकार
1
जेब  गरम  कमरा गरम, गरम सभी माहौल
गर्मी  चढ़ी  दिमाग  पर, ठंड  लागाती धौल
1
वे  शोले  चिनगी  हुए, हुए  राख  के  ढेर
ये  जुगनू  सूरज हुए, धन्य समय का  फेर

- यतीन्द्रनाथ राही

इस सप्ताह

दोहों में-

बालगीतों में-

अंजुमन में-

दिशांतर में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
२४ जनवरी २०१ गणतंत्र दिवस विशेषांक में

गीतों में-भगवतीचरण वर्मा, देवमणि पांडेय, श्रीकृष्ण सरल, डॉ. सूरजपाल सिंह, गोपालकृष्ण भट्ट आकुल, पवन चंदन। दोहों में- राम निवास मानव, गोपालदास नीरज, राजेश चेतन, राजेन्द्र वर्मा। अंजुमन में- नीरज गोस्वामी, महेश मूलचंदानी, दिगंबर नासवा। छंदमुक्त में- कमलेश कुमार दीवान, नागार्जुन, संजीव सलिल, हिमांशु कुकरेती। मुक्तक में- श्रवण राही, चिराग जैन, रामेश्वर कांबोज हिमांशु, राजेन्द्र सोलंकी। पुनर्पाठ में-संकलन - मेरा भारत

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
   
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