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आप चाहे कहा नहीं करते
जख्म दिल के
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छंदमुक्त में-
आजकल
एक इबादल
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सभ्यताएँ
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अंजुमन में-
किश्ती निकाल दी
गला के हाड़ अपने
पंख की मौज
लबों पर आ गया
शाम जैसे

 

आप चाहे कहा नहीं करते

आप चाहे कहा नहीं करते
राज़ हमसे छुपा नहीं करते

सोच लो एक बार फिर से आप
दोस्तों से दग़ा नहीं करते

कर दिया क्या पराया हमको भी
हमसे अब क्यों गिला नहीं करते

हुस्न के नाज़ भी उठाओ तो
दिल यूँ ही हम दिया नहीं करते

अश्क़ पीने का है मज़ा अपना
आँखों को नम किया नहीं करते

ख़त हवा में लिखा है खुश्बू का
भँवरे यूँ ही उड़ा नहीं करते

जाँ वतन पे लुटा गए हैं जो
शख़्स वो फिर मरा नहीं करते

१ दिसंबर २०१६

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