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आप चाहे कहा नहीं करते
जख्म दिल के
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सफर में हूँ

छंदमुक्त में-
आजकल
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कितना सुकूँ
सभ्यताएँ
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अंजुमन में-
किश्ती निकाल दी
गला के हाड़ अपने
पंख की मौज
लबों पर आ गया
शाम जैसे

 

जख्म दिल के

जख़्म दिल के छिपा लिये हमने
हौसले आजमा लिये हमने

जिंदगी तुझसे प्यार है कितना
नाज़ तेरे उठा लिये हमने

टूट जायेंगे ख़्वाब तो इक दिन
दिल में फिर भी बसा लिये हमने

इक मुहब्बत की चाह में हमदम
रोग कितने लगा लिये हमने

अपने हिस्से में तो न था गुलशन
सहरा में गुल खिला लिये हमने

डर नहीं है हमें अँधेरों का
दीप मन के जला लिये हमने

१ दिसंबर २०१६

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