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जख्म दिल के
दर्द की सूरत
बेटियाँ
सफर में हूँ

छंदमुक्त में-
आजकल
एक इबादल
कितना सुकूँ
सभ्यताएँ
सितारे रिश्ते इंसान

अंजुमन में-
किश्ती निकाल दी
गला के हाड़ अपने
पंख की मौज
लबों पर आ गया
शाम जैसे

 

बेटियाँ

विश्वास होतीं बेटियाँ
अहसास होतीं बेटियाँ

वैसे तो हैं रिश्ते कई
कुछ खास होतीं बेटियाँ

वैदिक ऋचाओं सी लगें
अरदास होतीं बेटियाँ

ये जीत लेंगी अब जहाँ
बिंदास होतीं बेटियाँ

जीवन के हर त्यौहार का
उल्लास होतीं बेटियाँ

सुंदर मनोरम काव्य में
अनुप्रास होतीं बेटियाँ

बेवक़्त ही अब काल की
क्यों ग्रास होतीं बेटियाँ?

इस ग़म भरी दुनिया में बस
इक आस होतीं बेटियाँ

बारह महीनों में सदा
मधुमास होतीं बेटियाँ

१ दिसंबर २०१६

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