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सनटैन लोशन
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  कुआँ

कोई आवाज नहीं
कोई विचार नहीं
कोई भाव नहीं
दिन होते ही ओढ़ लेता हूँ कपड़े
क्या जीवित पुतला ही नहीं बस
अपनी छाया से भागता अकारण
पलक झपकाता
बाजुओं को हिलाता
एकाएक दौड़ने लगता जैसे याद आया कुछ
छूट गया कुछ
देर हो गई
या भूल गया कुछ ऐसे ही विचार में
कुछ बोलता
कुछ सुनता
समय के पद्चाप
धूप के लिए खोलता दरवाजा
बारिश के लिए खिड़की
रोता नहीं दुनिया में अन्याय पर
नहीं आता गुस्सा मुझे झूठ पर
वह भी तो सच है
और क्या मुखौटा ही नहीं मैं उसका-
अपने ही झूठ पर विश्वास नहीं होता मुझे
लोग उड़ेलते मेरे भीतर अपना प्रेम
भेजते संदेश गिरा देते अपनी गठरियों का बोझ
पर कुछ नहीं होता
कोई प्रतिध्वनि नहीं,
कोई प्रतिबिम्ब भी नहीं
खाली यह खालीपन ही जैसे सबकुछ
बार बार उसे ही जीते,
यह दिन फिर यह दिन किसी के लिए भविष्य
मेरे लिए बस एक और दिन
अपने आप को कुरेदता

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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