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  दोस्त

मुझसे मत पूछ कि ऐ दोस्त तुझ में क्या देखा
तेरी हर बात में अपना ही फ़लसफ़ा देखा।

मंज़िलों को चलें साथ हम मुमकिन नहीं मगर
जब से तू संग चला, फूलों का रस्ता देखा।

निखर गई मेरी रंगत, सँवर गईं जुल्फ़ें
ये तेरी आँख में देखा कि आईना देखा।

न गै़रों की नज़र लगे, न हम खुद हों बेवफ़ा
ये दुआ करी हमने, ये ही सपना देखा।

मुझसे मत पूछ कि ऐ दोस्त तुझ में क्या देखा।

24 अप्रैल 2005

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