अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शार्दूला की रचनाएँ

नई रचनाएँ-
मैं हूँ वो प्यास
खोटा सिक्का
तीन छोटी रचनाएँ-
   बोलो कहाँ उपजाई थी
   कब आओगे नगरी मेरी
   ये गीत तेरा

ये ज़मीं प्रिय वो नहीं

कविताओं में-
आ अब लौट चले

आराधना
चाहत के चिराग
चार छोटी कविताएँ
चिनगारी
तेरे पीछे माया
दोस्त
दोहे
बसंत आया
पारस
माँ
विदा की अगन
सूरज में गर्मी ना हो
हँसी 

  खोटा सिक्का

मैं एक खोटा सिक्का हूँ
कई हाथों से गुज़रा हूँ
किसी ने देख ना देखा
किसी ने जान कर फेंका

कभी मुजरा-कव्वाली में
कभी पूजा की थाली में
कभी लंगडे की झोली में
कभी ठट्ठा ठिठोली में

कभी मजदूर हाथों में
कभी मजबूर रातों में
जिये बस खोट ही मैंने
दिये बस चोट ही मैंने

आज नन्हें हाथ में
आ कर के ठिठका हूँ
इसे भी धूल झोंकूँ या
कह दूँ कि खोटा हूँ

"माँ देख इसको भी
लगी है चोट माथे पे
हो गया कितना गन्दा ये
इसे भी साथ नहला दे।"

मुझे धो पोंछ कर बच्चे ने
तकिये के तले डाला
कभी यारों को दिखलाया
कभी सहलाया, सँभाला

अब उसके साथ सोता हूँ
उसे गा कर जगाता हूँ
मैं लोहे का इक टुकड़ा हूँ
दुस्वपनों को भगाता हूँ।

३ नवंबर २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter