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                  दिन, दिन और दिन 
                  ये अनमने दिन! 
                  कुम्हार के चाक पर घूमते 
                  मिट्टी के लौंदे से 
                  अधबने दिन! 
                  पार्क की बैंच पर सिर टिकाए 
                  सूखे पत्तों से लाचार पड़े हैं दिन! 
                  पत्ती-पत्ती हो बिखर गए 
                  अधलिखे काग़ज़ की चिंदियों से दिन! 
                  ये अनमने दिन! 
                  कितने-कितने रंगों के हैं दिन! 
                  दिनों के हैं कितने-कितने रंग!! 
                  हर दिन को कल में 
                  बदलते जा रहे हैं दिन! 
                  आने वाले कल की खुशबू से 
                  महक रहे हैं दिन! 
                  ये अनमने दिन! 
                  १६ जनवरी २००६  |