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अनुभूति में प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण की
रचनाएँ-

नयी कविताओं में-
अपने को मिटाना सीखो
एक दिन

ये मेरे कामकाजी शब्द

कविताओं में-
उभरूँगा फिर
एक धुन की तलाश
गुज़रे कल के बच्चे
घर लौट रहे बच्चे
चलती है हवा
जापान में पतझर
झरती पत्तियों ने
दिन दिन और दिन

ध्वन्यालेख तन्मयता के
निराला को याद करते हुए
मुक्ति
मौसम
लक्ष्य संधान
वसंत से वसंत
सार्थक है भटकाव

सुनो सुनो

  सुनो सुनो

सुनो, सुनो!
हवाओं में गूँज रहा है कैसा
झरती पत्तियों का
मध्यम-मध्यम संगीत!

सुनो, सुनो!
शरद की अगवानी में
वधू-प्रकृति
गा रही है मंगल-गीत!
देखो, देखो!
ओस भीगी पत्तियों के
झिलमिलाते गहने पहन
इठला रही है धरती!
देखो, देखो!
पेड़ों ने भी कर दी है समर्पित
अपनी सम्पूर्ण सम्पदा
और विनत खड़े हैं
दिगम्बर शिशुसमान!

हाँ! जानते हैं सभी
आ रहा है बसंत!
ला रहा है सबके लिए
प्यार-उपहार!
धरती के लिए धानी चुनरिया,
पेड़ों के लिए हरी पाग।
आगत के स्वागत में
बिछी हैं सभी की पलकें
संजोए है सभी ने रंग
खेलने को फाग।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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