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अनुभूति में प्रो. सुरेश ऋतुपर्ण की
रचनाएँ-

नयी कविताओं में-
अपने को मिटाना सीखो
एक दिन

ये मेरे कामकाजी शब्द

कविताओं में-
उभरूँगा फिर
एक धुन की तलाश
गुज़रे कल के बच्चे
घर लौट रहे बच्चे
चलती है हवा
जापान में पतझर
झरती पत्तियों ने
दिन दिन और दिन

ध्वन्यालेख तन्मयता के
निराला को याद करते हुए
मुक्ति
मौसम
लक्ष्य संधान
वसंत से वसंत
सार्थक है भटकाव

सुनो सुनो

  घर लौट रहे हैं बच्चे

स्कूल जा रहे हैं बच्चे!
पोथियों की लादी लादे
आँखों में नींद झपझपाते
देर रात
चुपके-चुपके देखी
फिल्म की बातें
बतियाते जा रहे हैं बच्चे!

रिक्शों में लदे फदे
ढेर बस्ते लटकाए
बस में लड़ते-झगड़ते
ऊँघते-गाते जा रहे हैं बच्चे!

बज न जाए पहली घंटी
फटे जूतों की खैर मनाते
डर से भागे जा रहे हैं बच्चे!

प्रार्थना में प्रभु से
विद्या की भीख माँग
'क्लास रूमों' की ओर
दौड़ रहे हैं बच्चे!

टाट-पट्टी बिछाते
डेस्कों पर धमाचौकड़ी करते
ब्लैकबोर्ड पर कार्टून बना
मास्साब की गैर हाज़िरी में
शोर मचा रहे हैं बच्चे!

छीना-झपटी में
अरे-अरे फटी किताब
धक्का-मुक्की में
देखो-देखो गिरी दवात
कॉपी के पन्ने
फाड़-फाड़
काग़ज़ की नाव
बना रहे हैं बच्चे!

भारत देश महान की इमला लिखाते
'टीचर जी' को आया ध्यान
ओ गनेशी के छोरे
कब लाएगा 'टूशन' के पैसे
नालायक! कैसे होगा पास?
साल-दर-साल
फेल होने के लिए
तैयार हो रहें हैं बच्चे!

स्कूल में भ्रष्टाचार का
पहला पाठ पढ़
घर लौट रहे हैं बच्चे!

१६ जनवरी २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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