अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में डॉ. सुषम बेदी की रचनाएँ-

नई रचनाएँ-
अस्पताल का कमरा
उम्र के मानदंड
कलियुग की दोस्तियाँ
घर- दो कविताएँ
जंगल- दो कविताएँ
बसंत के खेल
फूलों का राज्य
 

कविताओं में -  
अतीत का अंधेरा
ऋषिकेश
औरत
घर और बग़ीचा
पीढ़िया
माँ की गंध
सूत्र
हिमपात
हुजूम

संकलन में-
गुच्छे भर अमलतास-
हवाई

  हिमपात

जिस अंधी तेज़ी से
बर्फ़ की कनियाँ झपट रही थीं
लगा
उन्हें कहीं पहुँचने की बहुत जल्दी थी

अगले ही पल
जा दे सिर मारा
ज़मीन पर

मेरे ही पैर तले रौंदी गईं
दफ्न हुई मट्टी में

मैंने आसमान की ओर सिर उठाया
देखा
कहा - इसीलिए दौड़ रही थीं
और अपने हाथों की बँधी मुठि्ठयाँ
ढ़ीली छोड़ दीं।

बर्फ़ की हर कनी
फिर भी तनी रही
उसी तेज़ी से दौड़ती रही
ज़मीन पर पटक कर फूटती रही
और यों ही दफ्न होती रही।

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter