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अनुभूति में आकुल की रचनाएँ-

दोहों में-
अतिथि पाँच दोहे

नयी कुंडलियों में-
वर दो ऐसा शारदे

कुंडलिया में-
सर्दी का मौसम
साक्षरता

छंदमुक्त में-
झोंपड़ पट्टी

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मेरा भारत- भारत मेरा महान
नया साल- आया फिर नव वर्ष
देश हमारा- उन्नत भाल हिमालय

नीम- नवल बधाई
दीप धरो- उत्सव गीत
होली है-
होली रंगों से बोली

 

सर्दी का मौसम

(१)
सर्दी दिखलाने लगी, अब तेवर दिन रात।
बिना रजाई रात में, अब न बनेगी बात।
अब न बनेगी बात, बिना स्वेटर के भाई।
मफलर टाई कोट, धूप में है गरमाई।
कह ‘आकुल’ कविराय, न करती यह हमदर्दी।
खाओ पहनो गर्म, बचाती हरदम सर्दी।

(२)

मौसम आया शीत का, धूप सुहाये खूब।
गरम वसन तन पर सजें, लगे भूख भी खूब।
लगे भूख भी खूब, अँगीठी मन को मोहे।
खाना गर्मागर्म, रजाई कम्बल सोहे।
कह ‘आकुल’ कविराय, बनेगी सुंदर काया।
करो खूब व्यायाम, शीत का मौसम आया।

(३)

हर मौसम में मधुकरी, लगती है स्वादिष्ट।
पर जाड़े में और भी, करती है आकृष्ट।।
करती है आकृष्ट, साथ गट्टे की सब्जी।
लहसुन वाली दाल, कभी ना होए कब्जी।
कह ‘आकुल’ कविराय, पियो बस पानी मन भर।
कैसी भी हो गोठ, लुभाती है यह मन हर।

६ जनवरी २०१४

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