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चाहे जितने चैनल बदलो
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अखबारों में समाचार है

अखबारों में समाचार है
उल्लू बैठा डार-डार है

देश दिखाई देता दुखिया
लूट सके जो वो है सुखिया
लाचारी में शीश झुकाए
बैठा दिखे मुल्क का मुखिया

चुने हुए राजा-रानी से
लोकतंत्र ही शर्मसार है

एक समय था गुल्ली-डंडा
खेल बना अब चोखा धंधा
रहो खेलते मनमानी से
जब तक गले पड़े न फंदा

राजनीति के खिलाड़ियों से
खेल स्वयं ही गया हार है

विकीलीक्स का नया खुलासा
सुनकर होती बड़ी निराशा
चौसर भले बिछी हो अपनी
पश्चिम फेंक रहा है पासा

शायद इसीलिए दिखती अब
लोकतंत्र की मुड़ी धार है

२ जून २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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