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अनुभूति में मनोहर विजय की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
आईना

इक नया ज़ख़्म
दर्द-ए-दिल का सिलसिला भी दे गया
नीयत-ए-बागवाँ समझते हैं

अंजुमन में-
असूलों से बगावत
जब फकीरों पे ध्यान
दहशत की मंजिल
नाम दिल पर
फिर वही दर्द

 

आईना

हाथ में ऊँचा उठाकर आईना
वो चले हमको दिख़ाकर आईना

उसको अपनी शक्ल जब आई नज़र
रख़ दिया उसने मिटाकर आईना

वो पशेमाँ हो नहीं सकता कभी
क्या मिलेगा उसको दिख़कर आईना

एक चेहरे को मुहब्बत के लिये
देखते है हम बनाकर आईना

सब्र इतना है मेरे दिल का कि इक
सकते में है आज़माकर आईना

दोस्तों को रंजिशें थीं इस कदर
ले गये मेरा चुराकर आईना

कर गया हैरान इक बच्चा मुझे
ए ‘विजय‘ नाहक दिखाकर आईना

१४ अप्रैल २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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