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अनुभूति में मनोहर विजय की रचनाएँ-

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आईना

इक नया ज़ख़्म
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नीयत-ए-बागवाँ समझते हैं

अंजुमन में-
असूलों से बगावत
जब फकीरों पे ध्यान
दहशत की मंजिल
नाम दिल पर
फिर वही दर्द

 

जब फकीरों पे ध्यान

जब फकीरों पे ध्यान देगा वो
रोटी कपड़ा मकान देगा वो

प्यार का इम्तिहान देगा वो
मिस्ल-ए-परवाना जान देगा वो

छेड़ कर मेरे इश्क का चर्चा
शहर को दास्तान देगा वो

दिल की बातें ब्यान करने को
गूँगों को भी ज़ुबान देगा वो

जालिमों होश में जरा आओ
बेज़ुबाँ को ज़ुबान देगा वो

शौक-ए-परवाज लाजिमी है ‘विजय’
फिर तुझे भी उड़ान देगा वो

३० फरवरी २०१२

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