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अनुभूति में मनोहर विजय की रचनाएँ-

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आईना

इक नया ज़ख़्म
दर्द-ए-दिल का सिलसिला भी दे गया
नीयत-ए-बागवाँ समझते हैं

अंजुमन में-
असूलों से बगावत
जब फकीरों पे ध्यान
दहशत की मंजिल
नाम दिल पर
फिर वही दर्द

 

इक नया जख्म

इक नया ज़ख़्म रोज़ खाता हूँ
हौसला अपना आज़माता हूँ

पेड़ देता है फल मुझे हर बार
‘शाख़ जब भी कोई हिलाता हूँ

झेलता हूँ मुसीबतें दिन भर
रात आते ही भूल जाता हूँ

जीत कर हर किसी से मैं अफ़सोस
ख़ुद से अकसर मैं हार जाता हूँ

अपनों के पास मिलता है सकून मुझे
चैन से अपने दिन बिताता हूँ

जान रख़ कर ‘विजय’ हथेली पर
मौत से मैं तो ख़ेल जाता हूँ

१४ अप्रैल २०१४

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