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आईना

इक नया ज़ख़्म
दर्द-ए-दिल का सिलसिला भी दे गया
नीयत-ए-बागवाँ समझते हैं

अंजुमन में-
असूलों से बगावत
जब फकीरों पे ध्यान
दहशत की मंजिल
नाम दिल पर
फिर वही दर्द

 

आईना

दर्द-ए-दिल का सिलसिला भी दे गया
और फ़िर उसकी दवा भी दे गया

फ़ित्नागर का हौसला तो देखिये
घर जला कर वो हवा भी दे गया

छीन कर सब्रो-सकूँ मेरा कोई
जीने का वो हौसला भी दे गया

वो चिराग-ए-दिल जलाकर दोस्तो
आँधियों को मश्वरा भी दे गया

ख़ुल गया हमसे कोई जब ऐ ‘विज़य’
अपने घर का फिर पता भी दे गया

१४ अप्रैल २०१४

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