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अनुभूति में रमा सिंह की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब सुहानी शाम
आँख से आँसू
ऐ सुबह
जैसी भी तमन्ना हो
दिल में हमने
धूप का घर
पेड़ जब धूप से जलने लगे
यों न होठों से
रात दुल्हन-सी सजी
सारी गलियाँ सूनी

  अब सुहानी शाम

अब सुहानी शाम गहराने लगी है
चाँदनी ये मुझको समझाने लगी है

लो हवा के होंठ भी गाने लगे हैं
याद अपनों की बहुत आने लगी है

अपनी पलकों का ही घूँघट ओढ़कर अब
चुपके-चुपके आँख शरमाने लगी है

क्या हुआ है जो मेरी आँखों की गागर
आँसुओं का नीर छलकाने लगी है

बन्द कमरे में घुटी ये साँस मेरी
ज़िन्दगी का द्वार खटकाने लगी है

फूल-सी आँखों में अब तक खिल रही थी
क्यों दिये की लौ वो मुरझाने लगी है

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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