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अनुभूति में रमा सिंह की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब सुहानी शाम
आँख से आँसू
ऐ सुबह
जैसी भी तमन्ना हो
दिल में हमने
धूप का घर
पेड़ जब धूप से जलने लगे
यों न होठों से
रात दुल्हन-सी सजी
सारी गलियाँ सूनी

  जैसी भी तमन्ना हो

जैसे भी तमन्ना हो वैसी ही सजा दीजे
कुछ और न कर पाओ मरने की दुआ दीजे

तुम मेरे हो, अपने हो, इतना तो भला कीजे
इन साँसों के पिंजरे से पक्षी को उड़ा दीजे

तुम प्यार के मन्दिर हो कुछ और ना माँगेंगे
जितना भी हँसाया है उतना ही रूला दीजे

हमने भी बहारों के गाए थे तराने कुछ
उजड़े हुए गुलशन को इतना तो बता दीजे

तुमने भी पढ़ा होगा इस दिल पे लिखे खत को
गर रास न आया हो, चुपचाप जला दीजे

डूबा है 'रमा' कोई एहसास के सागर में
पाना है अगर उसको, ध्यान उसमें रमा दीजे

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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