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अनुभूति में रमा सिंह की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब सुहानी शाम
आँख से आँसू
ऐ सुबह
जैसी भी तमन्ना हो
दिल में हमने
धूप का घर
पेड़ जब धूप से जलने लगे
यों न होठों से
रात दुल्हन-सी सजी
सारी गलियाँ सूनी

  रात दुल्हन सी सजी

रात दुल्हन सी सजी तो मन को मेरे भा गई
दिल की धड़कन सो रही थी जागकर शरमा गई

एक सूनापन था मेरे मन के कमरे में अभी
याद तेरे प्यार की कुछ चूड़ियाँ खनका गई

हमने सोने की अभी तैयारियाँ भी की न थीं
भोर भी बीती न थी और शाम सम्मुख आ गई

मुझ पे कुछ कागज के टुकड़े और दो एक शब्द थे
तेरी नज़रों की छुअन छूकर उन्हें महका गई

इस कदर गर्मी मिली सागर को सूरज से कि फिर
एक बदली सी उठी पूरे गगन पर छा गई

कितनी मुश्किल से बचाया था रमा आँसू का जल
नैन की गागर को तेरी याद फिर छलका गई

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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