अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रमा सिंह की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब सुहानी शाम
आँख से आँसू
ऐ सुबह
जैसी भी तमन्ना हो
दिल में हमने
धूप का घर
पेड़ जब धूप से जलने लगे
यों न होठों से
रात दुल्हन-सी सजी
सारी गलियाँ सूनी

  सारी गलियाँ सूनी

सारी गलियाँ सूनी-सूनी, हर बस्ती वीरान लगी
अब तो हर पहचानी सूरत भी मुझको अनजान लगी

क्या बतलाएँ जब भी बादल आँसू बनकर बरसे हैं
उनकी रिमझिम भी सागर को एक नया तूफ़ान लगी

जब भी कोई रस की प्याली रस छलकाकर टूट गई
मुझको जाने क्यों वह तेरा टूटा-सा अरमान लगी

पहले तो हर मुश्किल मुझ पर पत्थर बनकर गिरती थी
जब से तुम हो साथ हमारे हर मुश्किल आसान लगी

तुझसे अपनी कहकर अपना जी हल्का कर लेते हैं
पर तेरी हर पीड़ा मुझको जीवन का अवसान लगी

रात दुल्हन-सी सजी तो मन को मेरे भा गई
दिल की धड़कन सो रही थी जागकर शरमा गई

एक सूनापन था मेरे मन के कमरे में अभी
याद तेरे प्यार की कुछ चू्ड़ियाँ खनक गई।

हमने सोने की अभी तैयारियाँ भी न की थीं
भोर भी बीती न थी और शाम सम्मुख आ गई

मुझ पे कुछ काग़ज़ के टुकड़े और दो-एक शब्द थे
तेरी नज़रों की छुअन छूकर उन्हें महका गई

इस कदर गर्मी मिली सागर को सूरज से कि फिर
एक बदली-सी उठी पूरे गगन पर छा गई

कितनी मुश्किल से बचाया था 'रमा' आँसू का जल
नैन की गागर को तेरी याद फिर छलका गई

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter