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अनुभूति में रमा सिंह की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब सुहानी शाम
आँख से आँसू
ऐ सुबह
जैसी भी तमन्ना हो
दिल में हमने
धूप का घर
पेड़ जब धूप से जलने लगे
यों न होठों से
रात दुल्हन-सी सजी
सारी गलियाँ सूनी

  यों न होठों से

यों न होठों से ही बस लब्ज़े-मुहब्बत बोलते
बात तो तब थी जो बन के मेरी किस्मत बोलते

राह का पत्थर समझ कर तुमने तो ठुकरा दिया
जो तराशा तुमने होता बन के मूरत बोलते

पत्थरों के देश में ये आइने क्यों चुप रहे
टूटना ही था जो गिर के, कैसी दहशत, बोलते

फूल के होठों की छुअनें गर मिली होतीं तो फिर
कोरे-कागज़ भी ये बन कर प्यार का खत बोलते

बोलना ही था 'रमा' तो इस जहाँ के सामने
तेरे चेहरे में बसी है उसकी सूरत बोलते

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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