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अनुभूति में अक्षय कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
अंधियारे का एक पूरा युग
इनसारन और भगवान की दुनिया
उगा है कहीं सूरज
उलझी हुई गुत्थी
ऊँचे उठना चाहते हो
कल ही की बात
गलतियाँ कर के भी
गांव की बातें
ट्रेन की खिड़की
तोपों और बंदूकों से
दिवस मूर्खों का
नहीं सहा जाता
पखवारे के हर दिन
पत्थर  
पतझड़ी मौसम
परिभाषाएँ
पर्वत तो फिर पर्वत है
बुढ़ापा
राजधानी की इमारतें
स्वप्न आखिर स्वप्न
सच क्या है

  पखवारे के हर दिन

पखवारे के हर दिन
रात के हर पल
बेचैन-सा भागता फिरता है
वह
इधर से उधर
उधर से इधर
तरह-तरह के रूप धर
चाहता है बना लेना
अपनी भी
कोई एक अलग पहचान

परन्तु
सूरज की चकाचौंध
चौधराहट
और बादलों के काले व्यापार
के बीच
उसकी कुछ चल नहीं पाती
एक दिन की बादशाहत
शेष,
बस अथक आँखमिचौनी

फिर भी
चन्द्रमा खेलता जा रहा है, लगातार
एक खेल,
लड़ रहा है
एक लम्बी लड़ाई
अपने अस्तित्व की।
रात के निरन्तर गहराते,
अंधियारे के बीच।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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