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अनुभूति में अक्षय कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
अंधियारे का एक पूरा युग
इनसारन और भगवान की दुनिया
उगा है कहीं सूरज
उलझी हुई गुत्थी
ऊँचे उठना चाहते हो
कल ही की बात
गलतियाँ कर के भी
गांव की बातें
ट्रेन की खिड़की
तोपों और बंदूकों से
दिवस मूर्खों का
नहीं सहा जाता
पखवारे के हर दिन
पत्थर  
पतझड़ी मौसम
परिभाषाएँ
पर्वत तो फिर पर्वत है
बुढ़ापा
राजधानी की इमारतें
स्वप्न आखिर स्वप्न
सच क्या है

  पतझड़ी मौसम

पतझड़ी मौसम के
एक ही वार में
ढीली पड़ जाती है
वृक्ष के पत्ते की पकड़
पीछे छूट जाते हैं
बरसों के रिश्ते-नाते

चोट खाए,
अंधेरों में भटकते
निराश मन को, सहसा मिलता है
हवा के निश्छल झोंके का संग
उद्देश्यहीनता के पहलू में
चौंधिया जाती है
आशा की एक धुंधली किरण
जगाने लगती है अनायास
सफ़र को कुछ और लम्बा करने की
एक हल्की-सी लालसा

लेकिन, कहाँ तक भागेगा वह
धरती की चिरपरिचित देह गंध
खींचती है उसे अपनी ही ओर
हताशा के इन क्षणों में भी
वह हिम्मत नहीं छोड़ता
पकड़ लेता है धरती का साथ
मिटा देता है खुद को माटी
लेकर एक संकल्प
कि बन जाएगी वह जीवनीशक्ति
असंख्य हरित पत्तों को उगाने
के लिए।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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