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अनुभूति में अक्षय कुमार की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
अंधियारे का एक पूरा युग
इनसारन और भगवान की दुनिया
उगा है कहीं सूरज
उलझी हुई गुत्थी
ऊँचे उठना चाहते हो
कल ही की बात
गलतियाँ कर के भी
गांव की बातें
ट्रेन की खिड़की
तोपों और बंदूकों से
दिवस मूर्खों का
नहीं सहा जाता
पखवारे के हर दिन
पत्थर  
पतझड़ी मौसम
परिभाषाएँ
पर्वत तो फिर पर्वत है
बुढ़ापा
राजधानी की इमारतें
स्वप्न आखिर स्वप्न
सच क्या है

  परिभाषाएँ

परिभाषाएँ बदलने मात्र से
क्या सचमुच बदल जाती हैं चीज़ें
पहना दो, आदमी को
टोपी, पगड़ी या फिर शेरवानी
दे दो उसे तुम चाहे
कोई भी नाम
हिन्दू, सिख, ईसाई या मुसलमान
लेकिन, उससे आम इन्सान को
कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

हाँ, फ़ायदा उठा लेते हैं
चंद तथाकथित विद्वान,
जो इन्सान की लाचारी
को अपने काले अक्षरों में ढाल
पा लेते हैं डॉक्टरेट
या फिर कुछ नेता
जो खोल लेते हैं इनके बल पर
अपनी एक अलग दुकान।

पर्वत तो फिर पर्वत है
पर्वतों को लांघने
की हमारी आकांक्षाएँ
उस पार पहुँचने की तमाम क्षमताएँ
न जाने क्यों
सिकुड़कर सिमट जाती हैं
आलस्य और हड़बड़ाहट
की गठरियों में
हमारी तमाम आस्थाएँ
छोड़ देती हैं
हमारा साथ
और हम,
घर की देहरी भी लांघ नहीं पाते
पर्वत तो
फिर पर्वत है।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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