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फसलों के बहाने

झुण्ड के झुंड
उतर आते वे
रोमश वक्छ में
उन्हें अँजुरी में भर - भर कर
उड़ेलता
स्वप्न बन, आँखों में
बच्चों से मचलने लगते

भींचता उन्हें मुट्ठियों में
कसमसा कर फूट निकलते
अजस्र...
सुनहरे फसलों से
लहलहाने लगते
फुदकने लगते
धवल कपोत से
उड़-उड़ बैठते
समय की डालों पर

तब - तब
कोई मेरे सपनों की फसल
काट लेता
खेल खेल में
निर्लज्ज, निष्कपट

२० अगस्त २०१२

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