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प्रकृति प्रेम

प्रकृति में
कोई कंटीला तार नहीं
होता
ना ही कोई रुकावट
बस सुन्दर, स्वच्छ, निर्मल
उपभोग
जैसे कह रहा हो
आओ भर लो
प्रेम लोलुपता सहित।
देखना
मै खिलूँगा
तुम्हारे चेहरे पर गुलाब की तरह
सर पर
मोंगरे की तरह हँसूँगा
छाती पर होगी
सुगंध
सोन जूही की
आँखों में होंगे कँवल
दलदल की तरह खींच लूँगा
तुम्हे समूचा
प्रेम लोलुपता सहित

२० अगस्त २०१२

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