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पूरो
कितनी? ऐसे ही ठिकाने
लग जाया करती हैं
जब-जब वे सफ़र पर होती हैं
स्कूल को, सौदा लेने बाजार या
दफ्तर को, खेतों को
पाखाने को...
वे सफ़र पे होती हैं और
मंजिल तलक पहुँच ही नहीं पातीं
लग जाया करती हैं ठिकाने
आँकड़े बनते जाते हैं पर
सुनवाई अटकी रहती हैं फाइलों में
शायद वे भी ठिकाने लग गई होती हैं।
क्या कहती हो अमृता?
पूरो!
तुम क्या कभी पूरी हो पाओगी
जमीन से कट कर, बँट कर
उग सकोगी या
उगा सकोगी वो फसल
पिंजर से बाहर
या ठिकाने को लौटती
उन लड़कियों के संग
बैठ जाओगी
चुपके से
२२ दिसंबर २०१४
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