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किरकिरी

एक झटके में
ठगा सा रह जायेगा दिन
उड़ता पल रुक जायेगा
नदी की कलकल स्तब्ध हो जाएगी
फिर नहीं उतरेगी
हिमालय के शिखरों से पिघल
तब क्या दरख़्त के नीचे कुछ पल ठहरोगे
आँख की किरकिरी के बहाने
मसलोगे अपनी पलकें

इतना तो कर ही लेना
जूते की तस्मे बाँधने के बहाने से ही सही
झुक जाना जरा
कोई चीन्ह ही नहीं पायेगा
तुम्हारे होने को
और
पथराई, बिखरी, छितरी, निश्छल देह
विलीन हो जाएगी
तुम्हारे इस होने और न होने के बीच
बह जाएगी आँख के कोरों से किरकिरी

२२ दिसंबर २०१४

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