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  अकेले जीने का हौसला

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घनेरी होती जाती हैं रातें
बेटी बड़ी हो रही है
लकीरें बढ़ती जाती हैं खासी
माँ की चिंता है
गहने, कपड़ों की
पिता को मिलता ही नहीं
महँगे होते
सुयोग्य वर
महँगे होते सोने के साथ
महँगाते वरों की माँग
उठते-गिरते शेयर बाजार की तरह
लड़की के माँ बाप की उम्मीदें
अब दम तोड़ने लगी हैं
लड़की अब बड़ी से कुछ
ज्यादा हो गई है
उसकी भी
अपेक्षाएँ हैं
शर्तें हैं
और हौसला है
उसमें अकेले जीने का।

१ जुलाई २०१७
 

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