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पहाड़
पहाड़ सी जिंदगी
गुजार दी तुमने
काटते-काटते
पहाड़ के पाँव
पर देर से जाना कि
पहाड़ के पाँव नहीं होते
लहू की धार ने बताया
ये तुम्हारे अपने ही पाँव थे
पहाड़ तो सब कुछ झेलता है
अपने वक्ष पर।

मैंने आलिंगन किया है
उस वक्ष का
सुना है स्पंदन
उस ह्रदय का।

बैठो
इस नदी किनारे
देखो
जल भर कर अंजलि में
धूप की एक किरन
बताएगी तुम्हें
एक दुर्धर, कठिन
पर्वत
घुल रहा है
इस नदी के
प्यार में।

१९ मई २०१४

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