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अनुभूति में संगीता मनराल की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अनकही बातें
खिड़कियाँ
दायरे
बरगद
बारह नंबर वाली बस
यादें
काश
बड़ी हो गई हूँ मैं
मुठ्ठी में जकड़ा वक्त
माँ
मेरे गाँव का आँगन
रात में भीगी पलकें
वे रंग

 

अनकही बातें

मुझे आज भी
अपनी किताबों से भरी
अलमारी के सामने
तुम्हारा बिंब
नज़र
आने लगता है
जहाँ तुम अपने
पंजों के बल पर
उचककर
किताबों के ढेर में
अपनी पसंदीदा
किताब को तलाशते
घंटों बिता
देती थी
और मैं तुम्हारी
ऐड़ी पर पड़ी
गहरी फटी
दरारों को देखता रहता


गए पतझड़ में
मैं तुम्हारे आँगन में खड़े
पीपल के
पीले गिरे पत्तों से
चुनकर
एक सूखा पत्ता
उठा लाया था
वो
आज भी
मेरे पास
मेरी पसंदीदा
किताब के
पेज नंबर २६
के बीच पड़ा
मुझे
परदेस में
तुम्हारा
प्यार देने को
सुरक्षित है

१ अप्रैल २००६

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