अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में संगीता मनराल की
रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अनकही बातें
खिड़कियाँ
दायरे
बरगद
बारह नंबर वाली बस
यादें
काश
बड़ी हो गई हूँ मैं
मुठ्ठी में जकड़ा वक्त
माँ
मेरे गाँव का आँगन
रात में भीगी पलकें
वे रंग

 

यादें

तुमने ही बताया था- शायद
वो पपा की साईकिल
और
तुम्हारी अँगीठी
बेच दी कल
कबाड़ी वाले को
कबाड़ के दाम
ये वही साईकिल थी ना
जिसपर बैठकर
पपा रोज़
आफिस जाया
करते थे
और तुम
उन्हें पुराने
अख़बार के टुकड़े में
रोटी बाँध कर
दिया करती थीं
और याद है
एक बार
ज़िद्द कर मैं
उसकी पिछली
सीट पर
बैठ गई थी
और पहिये में आकर
मेरा दुपट्टा फट गया था
बहुत डांटा था
पपा ने उस दिन
और वो अँगीठी
जिस पर रखे
कोयलों को
फूँकते-फूँकते
तुम्हारी आँखें
आँसुओं से भरकर
लाल हो जाया करती थीं
तुम
हर शाम
घर के बाहर बने
आँगन में उसे
जलातीं
और वही
समय होता जब
हम सब बच्चे
मिलकर
ऊँच-नीच का पपड़ा
खेलते

१ अप्रैल २००६  

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter