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वे रंग

 

बरगद

याद
आ रहा है आज
वो बरगद का पेड़
और
उसकी छाँव में
कच्ची मिट्टी से बना
छोटा मंदिर
जो हमेशा
बरसात में
काई से जड़ा
कोनों से
हरा हो जाता था
माँ-पपा की डांट
की शिकायत करने
मैं अक्सर
वहीं जाती थी
याद है मुझे
माँ उन महीनों में
आने वाले हर व्रत
के दिन
भगवान के साथ
उस बरगद को भी
पूजती थी
और
उस बरगद का तना
लाल पीले धागों से लिपटा
बहुत सुंदर लगता था

१ अप्रैल २००६

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