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अनुभूति में संगीता मनराल की
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रात में भीगी पलकें
वे रंग

 

रात में भीगी पलकें

इस रात की भींगी पलकों पर
सुबह का उजाला हो जाए-
वेदना से काँपते अधरों पर
कोई प्रेम-रस बरसा जाए-
जीवन के अंतर्मन की नैया में
कोई ज्ञान का दीप जला जाए-
नित चिंतन नए सवालों में उलझे
मन को कोई राह दिखा जाए-
बगिया में खिलते फूलों को
मन्दिर की राह बता जाए-
इस रात की भीगी पलकों पर...

९ जुलाई २००४

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